

आज, ६ अप्रैल २०२५ को, अयोध्या में राम नवमी के पावन अवसर पर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में दोपहर 12 बजे रामलला के मस्तक पर सूर्य तिलक का दिव्य आयोजन हुआ। इस दौरान, सूर्य की किरणें सीधे रामलला के मस्तक पर केंद्रित हुईं, जिससे भक्तों ने एक अद्भुत और अलौकिक दृश्य का अनुभव किया।
जानें क्या है सूर्य तिलक
सूर्य तिलक का अर्थ है सूर्य की सीधी किरणें किसी मूर्ति (भगवान् श्री राम ) के मस्तक पर एक विशेष समय पर केंद्रित हों , जैसे तिलक किया जा रहा हो। यह ज्योतिष, खगोलशास्त्र और वास्तु का अद्भुत संयोजन होता है।
सूर्य तिलक के पीछे का विज्ञान
श्रीरामलला के गर्भगृह को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि हर साल राम नवमी के दिन, जब सूर्य अपने विशिष्ट कोण पर होतें है, तब ठीक दोपहर में उनकी किरणें भगवान श्रीराम के मस्तक पर सीधी पड़ती हैं। यह कार्य अत्यंत सूक्ष्म गणनाओं, विशेष लेंसों और दर्पणों की मदद से पूरा हुआ है। और यह बोहत हर्ष का विषय है कि, इसे भारतीय खगोलविदों और मंदिर वास्तुकारों ने मिलकर संभव किया है।
सूर्य तिलक का पौराणिक महत्व
यह तिलक सिर्फ एक प्रकाश प्रभाव नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि भारत की प्राचीन परंपराएं और आधुनिक विज्ञान जब एक साथ काम करें, तो असंभव कुछ भी नहीं। आज करोड़ों भक्तों ने टीवी, मोबाइल और लाइव प्रसारण के माध्यम से इस क्षण का साक्षात अनुभव किया। भगवान राम, सूर्य के वंशज थे। इस वजह से सूर्य तिलक का महत्व अधिक है, क्यूंकि यह तिलक उनको अपनी पहचान और पौराणिक महत्व दोनों से ही जोड़ता है।
सूर्य तिलक में वैज्ञानिकों एवं ज्योतिष का योगदान
सूर्य तिलक की इस अद्भुत व्यवस्था के पीछे भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA), बेंगलुरु, और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI), रुड़की के वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है। IIA की टीम ने सूर्य की स्थिति की गणना की, ऑप्टिकल सिस्टम का डिज़ाइन और अनुकूलन किया, और स्थल पर इसके एकीकरण और संरेखण का कार्य किया। CBRI के वैज्ञानिक डॉ. एस.के. पाणिग्रही और उनकी टीम ने सूर्य तिलक और पाइपिंग के डिज़ाइन पर कार्य किया, जिससे सूर्य की किरणों को रामलला की प्रतिमा तक पहुंचाया जा सके।


भगवान राम : आज के समाज में भी हम सब के आदर्श
भगवाना राम त्रेता युग में जन्मे अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे। वे सिर्फ एक राजा नहीं, बल्कि धर्म, मर्यादा और आदर्श जीवन के प्रतीक हैं। उनके जीवन का वर्णन वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस में मिलता है।
उनके जीवन से हमें सीख
भगवाना राम ने अपने माता-पिता का मान रखने के लिए १४ वर्षों का वनवास स्वीकार किया, माता सीता का अपहरण होने पर रावण से युद्ध किया, और धर्म की स्थापना की। वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए, यानी जिन्होंने हर परिस्थिति में धर्म और सत्य का पालन किया। उन महान मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म तिथि को सभी भारत वासी राम नवमी के रूप में मानते हैं। इसे चैत्र मास की नवमी तिथि को मनाया जाता है, और इसे पूरे भारत में बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
राम मंदिर का इतिहास: विनाश और पुनर्निर्माण
जानें राम मंदिर का इतिहास
अयोध्या सदियों से भगवान राम गुण-गान के लिए प्रसिद्ध रही है। उनके प्राचीन मंदिर को, १६वी शताब्दी में बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा बर्बरता से नष्ट कर दिया गया, मान्यताओं के अनुसार वह हमारी भारत कि संस्कृति की सबसे अनमोल देन थी। उसी स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ।
हिन्दू विचारों को खंडित करने की कोशिश
सदियों से इस स्थान को लेकर विवाद बना रहा। हिन्दू समाज लगातार यह जग को बताता रहा कि यह स्थान श्रीराम का जन्मस्थल है और यहां एक मंदिर था। कई संघर्ष, आंदोलन और कानूनी लड़ाइयों के बाद यह मामला भारत की सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा।
माननीय कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय : एक चमत्कार
9 नवम्बर 2019 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा कि यह भूमि राम जन्मभूमि ही है और यहां पर मंदिर ही बनेगा। साथ ही मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही अलग 5 एकड़ भूमि मस्जिद निर्माण हेतु देने का आदेश भी दिया गया। यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका के लिए एक न्याय और संतुलन का अद्भुत उदाहरण बना। इस निर्णय के बाद, 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया, और निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ।
निष्कर्ष
आज जब अयोध्या में भगवाना राम के मंदिर में सूर्य तिलक हुआ, वह न केवल हमे आस्था की जीत याद दिलाता है, बल्कि यह इतिहास के एक दर्दनाक अध्याय के समापन और नवचेतना के आरंभ का संकेत भी देता है । आज का दिन खर भारतीय को उस ऐतिहासिक दिन की याद दिलाता रहेगा। राम नवमी सिर्फ एक पर्व नहीं, यह संस्कार, संस्कृति और सत्य के पुनर्जागरण का दिन है। आप सभी को राम नवमी की असीम शुभकामनाएं !!!
हर राम भक्त को हृदय से…
जय श्रीराम।
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